मौजूदा वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार PM Modi ने करीब आधा दर्जन सरकारी कंपनियों में अपनी अल्पांश (माइनॉरिटी) हिस्सेदारी बेचने का निर्णय लिया है। यह निर्णय सरकार की दीर्घकालिक विनिवेश नीति का हिस्सा है, ताकि सरकारी स्वामित्व घटाया जा सके और पूंजी बाजार में छोटे निवेशकों को प्रवेश का मौका मिल सके। CVBC Manegment सचिव अरुणीश चावला के अनुसार, बीते महीनों में बाज़ार अस्थिर रहने के कारण प्रक्रिया धीमी हुई थी, लेकिन अब बाज़ार की स्थिति स्थिर है और सरकार पुन: विनिवेश की गति को तेज करेगी।
किन सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बिक्री की संभावना है?
हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार जिन कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है, उनमें ये नाम प्रमुख हैं:
- UCO Bank
- Bank of Maharashtra
- Central Bank of India
- Punjab & Sind Bank
- Indian Overseas Bank
- Life Insurance Corporation of India (LIC)
इसके अलावा, ONGC और NHPC भी अपनी ग्रीन एनर्जी इकाइयों को अलग से लिस्ट करने की तैयारी में हैं, जिससे इन नई कंपनियों के IPO द्वारा पूंजी जुटाई जा सकेगी।
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हिस्सेदारी बिक्री का उद्देश्य
सेबी के नियमों के अनुसार, हर सूचीबद्ध कंपनी में न्यूनतम 25% सार्वजनिक हिस्सा होना जरूरी है। अधिकांश सरकारी बैंक और LIC जैसे संस्थानों में सरकार की हिस्सेदारी अभी 75-90% से भी ज्यादा है। उदाहरण के रूप में, बैंक ऑफ महाराष्ट्र में सरकार के पास 79.6% हिस्सा है, जबकि अन्य सरकारी बैंकों में ये आंकड़ा 89-94% तक है। 2026 तक इन्हें 25% सार्वजनिक शेयरहोल्डिंग का नियम पूरा करना होगा, इसलिए हिस्सेदारी बिक्री ज़रूरी हो गई है।
हिस्सेदारी बिक्री की प्रक्रिया कैसे होगी?
सरकार की हिस्सेदारी बिक्री मुख्य तौर पर दो तरीकों से होगी:
- Qualified Institutional Placement (QIP): इसमें सरकार संस्थागत निवेशकों को सीधे शेयर बेचती है।
- Offer For Sale (OFS): इसमें शेयर बाजार के माध्यम से सार्वजनिक रूप से शेयर बेचे जाते हैं।
इन दोनों विकल्पों के जरिए सरकार अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम करेगी और शेयरधारकों की संख्या बढ़ाने का प्रयास करेगी।
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हालिया आंकड़े और टारगेट
सरकार ने इस वित्त वर्ष में हिस्सेदारी बिक्री और एसेट मोनेटाइजेशन से 47,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। साथ ही, सरकारी बैंकों से मिलने वाले डिविडेंड का अनुमान करीब 69,000 करोड़ रुपये है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र अगर 2,000–2,500 करोड़ रुपये का फंड रेज़ करता है तो सरकार की हिस्सेदारी करीब 75% तक आ जाएगी
सरकार व निवेशकों के लिए फायदा
इस हिस्सेदारी बिक्री से सरकार को पूंजी जुटाने में आसानी होगी और बैंकों व कंपनियों के संचालन में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। निवेशकों के लिए नए विकल्प खुलेंगे और कंपनियों की गवर्नेंस में सुधार आएगा। साथ ही, सरकार का उद्देश्य वित्तीय अनुशासन बनाए रखना और पूंजीगत व्यय के लिए संसाधन जुटाना है
रक्षा व बीमा सेक्टर में भी विनिवेश
विनिवेश सचिव ने हाल ही में यह भी संकेत दिया कि बीमा (LIC सहित) और रक्षा क्षेत्रों में भी IPO और हिस्सेदारी बिक्री संभव है। यह प्रक्रिया सरकार के दीर्घकालिक वित्तीय सुधार एजेंडे के अनुरूप है और इसमें सेबी के सभी नियमों का पालन किया जाएगा।
यह लेख हालिया डेटा, मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी नीतियों के आधार पर लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी निवेश सलाह नहीं है, निवेश से पहले अपनी रिसर्च ज़रूर करें।